कुणिंद राजवंश - महत्वपूर्ण बिंदु
कुणिंद राजवंश - महत्वपूर्ण बिंदु
कुणिंदों के बारे में महाभारत और अष्टाध्यायी में सर्वाधिक सूचनाएँ मिलती हैं।
विदेशी लेखकों में टोल्मी द्वारा भी कुणिंदों के सम्बन्ध में लिखा गया है।
कुणिंद वंश के बारे में साहित्यिक जानकरियाँ तो कुछ कुछ पर्याप्त मानी जा सकती
हैं परंतु पूर्णतया ये साहित्य कुणिंदों के कालानुक्रम, वंशानुक्रम, आर्थिक
स्थिति, प्रशासन, सामाजिक स्थिति का सजीव वर्णन या यूँ कहें कि क्रमवद्ध एवं
तार्किक जानकारी देने में असमर्थ हैं।
साहित्य की जानकरियों को पुष्ट करने के लिए पुरातात्विक खोजों में भी अभी तक
पर्याप्त सामग्री उपलब्ध नहीं हुयी है। अभी तक खोजी गयी पुरातात्विक खोजों में
मिली सामग्री कुछ एक अभिलेख और राजवंश द्वारा चलायी गयी मुद्राएँ प्रमुख हैं।
इस राजवंश के पाँच अभिलेख अभीतक प्राप्त हुए हैं-
चार भरहुत से एवं एक मथुरा से
ये अभिलेख मुख्यतया कुणिंद शासकों की राजनीतिक स्थिति का विवरण देते हैं।
मुद्राएँ मुख्यतः रजत एवं ताम्र धातु से निर्मित हैं।
महाभारत के वन पर्व में राजा सुभाहु का वर्णन मिलता है, राजा सुभाहु कुणिंद था।
सुभाहू ने ही पांडवों की ओर से महाभारत में युद्द किया था।
महाभारत में ही कुणिंदों को द्विज कहा गया है, इस आधार पर कहा जा सकता है कि
कुणिंद आर्य थे।
पाणिनि की अष्टाध्यायी के अनुसार कुणिंद राजवंश की राजधानी कालकूट थी। जो बाद में
शत्रुघ्न नगर और बेहट स्थानांतरित हो गयी थी।
कुणिंद राजाओं द्वारा प्रचलित मुद्राओं व अभिलेखों के अनुसार इस राजवंश में निम्न
राजा हुए -
विसदेव
अग्रराज
घनभूति
घनभूति द्वितीय
अमोघभूति
बलभूति
मघभत
शिवदत्त
हरिदत्त
शिवपालित
छत्रेश्वर
भानु
रावण
कादस्य
इनमे से सर्वाधिक नाम अमोघभूति का है जो मुद्राओं में सर्वाधिक लिखा गया है।
मुद्राओं पर ब्राह्मी, खरोष्ठी लिपि में राजाओं के नाम अंकित हैं।
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